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Value-Based Journalism in Its Diverse Forms: A Comparative Study
मूल्य-आधारित पत्रकारिता के विविध रूप: एक तुलनात्मक अध्ययन
1 An Educationist and
Media Professional, Voice Artist, India
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ABSTRACT |
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English: Journalism
has recognized as the fourth pillar of democracy because it holds the power
to inform, educate, and hold those in authority accountable. However,
journalism can realize its true democratic potential only when it is guided
by core values such as truth, impartiality, transparency, accountability, and
public interest. It is this value-based form of journalism that elevates the
media beyond being a mere medium of information, and transforms it into a
“catalyst for social change.” After discussing the concept, necessity,
historical background, principles, challenges, and future prospects of
value-based journalism in previous literature, this research paper explores
its various forms and expressions. Value-based journalism is not merely a
theoretical concept; it manifests through diverse forms of journalistic
practices that embody ethical conduct and responsibility. This paper
primarily analyzes the following forms associated with value-based journalism: 1. Constructive Journalism – Presenting a
positive and balanced perspective. 2. Solutions Journalism – Reporting not only on
problems but also on their possible solutions. 3. Interventive Journalism – Exposing injustice
and hidden truths. 4. Investigative Journalism – Deep pursuit of
truth and factual revelations. 5. Peace Journalism – Promoting dialogue and
peace in conflict situations. Although these are distinct branches of
journalism, their fundamental objective is the same — to inspire transparent,
responsible, and positive change in society beyond the race for
sensationalism or TRP- driven content. The paper also discusses the role and ethical
responsibilities of the media in the global and digital era, along with the
normative frameworks that lend meaningfulness to value-based journalism. The study concludes that commercial pressures, political polarization, and technological disruptions have weakened journalistic ethics. Therefore, in the current scenario, value-based journalism has become vital for the very survival of democracy. To restore and reaffirm its relevance, it is essential to strengthen media literacy, ensure transparency, protect press freedom, and adopt solution-oriented and public-centered journalism. Hindi: पत्रकारिता
को लोकतंत्र
के चौथे
स्तंभ के रूप
में मान्यता
प्राप्त है
क्यूंकि यह
सूचना देने, शिक्षित
करने और
सत्ता को
जवाबदेह
बनाने की क्षमता
रखती है।
किंतु
पत्रकारिता
अपनी वास्तविक
लोकतांत्रिक
क्षमता तभी
सिद्ध कर
सकती है जब
स्वं सत्य, निष्पक्षता, पारदर्शिता, जवाबदेही
और जनहित
जैसे
मूल्यों
द्वारा संचालित
हो।
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
का यही स्वरूप, मीडिया
को मात्र
सूचना के
माध्यम से
आगे बढ़ाकर
“सामाजिक
परिवर्तन का
उत्प्रेरक”
बना देता है। पूर्ववर्ती
साहित्य में
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
की अवधारणा, आवश्यकता, ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि, सिद्धांत, चुनौतियाँ
तथा भविष्य
की
संभावनाओं
पर चर्चा के
उपरांत यह
शोधपत्र
इसके
विभिन्न
रूपों और
अभिव्यक्तियों
की पड़ताल
प्रस्तुत
करता है। मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
केवल एक
सैद्धांतिक
विचार नहीं
है; यह
पत्रकारिता
की उन विविध
शैलियों में
साकार होती
है जो नैतिक
आचरण और
उत्तरदायित्व
का प्रतिनिधित्व
करती हैं। इस
शोधपत्र में
प्रमुखतः
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
से संबंधित रूपों
का ही
विश्लेषण
किया गया है, यथा— 1.
रचनात्मक-पत्रकारिता
(Constructive Journalism): सकारात्मक
एवं संतुलित
दृष्टिकोण
प्रस्तुत
करना, 2.
समाधान-उन्मुख
पत्रकारिता (Solutions Journalism): समस्याओं
के साथ उनके
समाधान पर
आधारित रिपोर्टिंग, 3.
हस्तक्षेपकारी-पत्रकारिता
(Interventive Journalism): अन्याय व
छिपे तथ्यों
को उजागर
करना, 4.
खोजी-पत्रकारिता
(Investigative Journalism): सत्य
की गहन खोज
एवं
तथ्यात्मक
खुलासा, 5.
शांति-पत्रकारिता
(Peace Journalism): संघर्ष
की
परिस्थितियों
में संवाद और
शांति को
बढ़ावा
देना। यद्यपि
यह सभी रूप
पत्रकारिता
की
भिन्न-भिन्न
शाखाएँ हैं, परंतु
इनका मूल
उद्देश्य एक
है— केवल
सनसनी या
टीआरपी की
होड़ से परे
जाकर समाज
में पारदर्शी, जिम्मेदार
और
सकारात्मक
बदलाव की
प्रेरणा देना।
शोधपत्र में
वैश्विक और
डिजिटल युग
में मीडिया
की भूमिका
एवं नैतिक
जिम्मेदारियों
के साथ-साथ उन
मानक ढाँचों
पर चर्चा की
गई है जो
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
को सार्थकता
प्रदान करते
हैं। अध्ययन
का निष्कर्ष
कहता है कि
व्यावसायिक
दबाव, राजनीतिक
ध्रुवीकरण
और तकनीकी
अवरोधों ने पत्रकारिता
की नैतिकता
को कमजोर
किया है, इसी लिए
वर्तमान
परिदृश्य
में
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
लोकतंत्र के
अस्तित्व के
लिए अत्यंत
आवश्यक बनी
हुई है। इसकी
पुनर्स्थापना
और
प्रासंगिकता
के लिए
मीडिया-साक्षरता
को सुदृढ़
करना, पारदर्शिता
सुनिश्चित
करना, प्रेस की
स्वतंत्रता
की रक्षा
करना तथा
समाधान-केन्द्रित
और
जन-केंद्रित
पत्रकारिता
को अपनाना
नितांत
आवश्यक है। |
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Received 22 October 2025 Accepted 60 November 2025 Published 04 December 2025 Corresponding Author Dr. Anita
Janjani, dranitajanjani@gmail.com
DOI 10.29121/ShodhVichar.v1.i2.2025.60 Funding: This research
received no specific grant from any funding agency in the public, commercial,
or not-for-profit sectors. Copyright: © 2025 The
Author(s). This work is licensed under a Creative Commons
Attribution 4.0 International License. With the
license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download,
reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work
must be properly attributed to its author.
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Keywords: Value-Based
Journalism, Democracy, Ethics, Public Interest, Fake News, Digital Media, Freedom of the Press, Constructive
Journalism, Investigative Journalism, Solutions Journalism, Peace Journalism,
Citizen Journalism, Literary/Narrative Journalism, Developmental
Journalism मूल्य-आधारित
पत्रकारिता, लोकतंत्र, नैतिकता, जनहित, फर्जी
समाचार, डिजिटल
मीडिया, प्रेस की
स्वतंत्रता, रचनात्मक
पत्रकारिता, खोजी
पत्रकारिता, समाधान-उन्मुख
पत्रकारिता, शांति
पत्रकारिता, नागरिक
पत्रकारिता,साहित्यिक
पत्रकारिता, विकासात्मक
पत्रकारिता |
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पत्रकारिता
लोकतंत्र का
चौथा स्तंभ
मानी जाती है।
समय के साथ
इसकी प्रकृति
और स्वरूप में
विविधता आई है, जहाँ
एक ओर
पारंपरिक
पत्रकारिता
का उद्देश्य
केवल घटनाओं
की जानकारी
देना था, वहीं
आधुनिक
पत्रकारिता
समाज में
रचनात्मक हस्तक्षेप
कर सकारात्मक
बदलाव लाने का
माध्यम भी बन
रही है। आज
अनेक
माध्यमों यथा-
प्रिंट
मीडिया (Print Journalism),
इलेक्ट्रॉनिक
मीडिया (Electronic Journalism), व
डिजिटल/ऑनलाइन
मीडिया (Digital
Journalism) द्वारा
विविध-रुपों
में
पत्रकारिता
समाज के समक्ष
उपस्थित है
तथा प्रत्येक
रूप की अपनी विशिष्ट
शैली,
माध्यम, कार्यप्रणाली
और
प्रभावक्षेत्र
हैं- नागरिक
पत्रकारिता (Citizen Journalism), साहित्यिक
और
विकासात्मक
पत्रकारिता, रचनात्मक
पत्रकारिता, हस्तक्षेपकारी
पत्रकारिता, खोजी
पत्रकारिता, समाधान-उन्मुख
पत्रकारिता, शांति
पत्रकारिता आदि रुप
अथवा शैलियों
को
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
के आधुनिक एवं
वैचारिक
रूपों में
सम्मलित किया
जा सकता है।
इन विविध
रूपों में मूल
प्रश्न एक ही
है—क्या पत्रकारिता
समाज के प्रति
अपनी
जिम्मेदारी निभा
रही है या
केवल टीआरपी, क्लिक
और लाभ
केंद्रीत हो
रही है?
इसी
प्रश्न के
संदर्भ में यह
शोध-पत्र
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
के कुछ
प्रमुख-रूपों
का तुलनात्मक
अध्ययन
प्रस्तुत
करता है, तथापि
इन अनेक रूपों
में विस्तृत
हो चुकी पत्रकारिता
में समानता
यही है कि ये
जनहित,
जिम्मेदारी
और सामाजिक
उत्तरदायित्व
पर आधारित हैं, किंतु
इनके
दृष्टिकोण और
प्रयोजन
अलग-अलग हैं।
पत्रकारिता
को अक्सर
"लोकतंत्र का
प्रहरी" कहा
जाता है। यह
नागरिकों को
सूचित करती है, जनमत
बनाती है और
राजनीतिक एवं
कॉर्पोरेट सत्ता
पर नियंत्रण
का काम करती
है।
लोकतांत्रिक
समाजों में यह
मुख्यतः तीन
आवश्यक
भूमिकाएँ
निभा रही है:
सूचनात्मक: तथ्यात्मक, सटीक
जानकारी
प्रदान करना।
व्याख्यात्मक: मुद्दों को
प्रासंगिक
बनाना और
सार्वजनिक विमर्श
को आकार देना।
आलोचनात्मक: सत्ता पर
सवाल उठाना और
जवाबदेही की
रक्षा करना।
हालाँकि, पत्रकारिता
की ताकत केवल
घटनाओं की
रिपोर्टिंग
में नहीं, बल्कि
नैतिक
मूल्यों के
पालन में
निहित है। जब
सच्चाई,
निष्पक्षता
और
ज़िम्मेदारी
मीडिया-प्रथाओं
का
मार्गदर्शन
करती हैं, तो
पत्रकारिता
सामाजिक-परिवर्तन
के एक प्रबल
साधन में बदल
जाती है, यह
नैतिक आयाम ही
“मूल्य-आधारित
पत्रकारिता” का
निर्माण करते
हैं।
इसके
विपरीत,
समकालीन
पत्रकारिता
अक्सर
सनसनीखेज, "क्लिकबेट"
संस्कृति और
राजनीतिक
ध्रुवीकरण की
ताकतों के आगे
झुकी प्रतीत
होती है। मीडिया
संगठन जनसेवा
की बजाय
टीआरपी,
विज्ञापन
राजस्व और
कॉर्पोरेट
हितों को प्राथमिकता
देते दिखाई
देते हैं, अतः
यह शोधपत्र
तर्क देता है
कि
विश्वसनीयता बहाल
करने और
पत्रकारिता
द्वारा अपने
लोकतांत्रिक
मिशन को पूरा
करने के लिए
नैतिक मूल्यों
पर आधारित
पत्रकारिता
महत्वपूर्ण
है।
मूल्य-आधारित
पत्रकारिता
केवल एक
सैद्धांतिक
अवधारणा नहीं; यह
पत्रकारिता
के विविध
रूपों और
शैलियों में
साकार होती
है। नीचे कुछ
प्रमुख
शैलियौं का उल्लेख
है,
जिन्हें
नैतिक-
पत्रकारिता
की विभिन्न
अभिव्यक्तियाँ
कहा जा सकता
है।
2. मूल्य-आधारित पत्रकारिता के आधुनिक एवं वैचारिक रूप
1) रचनात्मक-पत्रकारिता
(Constructive Journalism)
·
यह
पत्रकारिता
का आधुनिक रूप
है जिसमें
समाचार केवल
समस्या या
नकारात्मकता
पर आधारित न होकर, भविष्य
की संभावनाओं, सकारात्मक
किंतु
व्यवहारिक
उदाहरणों और
संतुलित
दृष्टिकोण को
प्रस्तुत
करता है।
·
इसका
उद्देश्य
समाज में
निराशा नहीं, अपितु
जागरूकता और
प्रेरणा
उत्पन्न करना है।
उदाहरण
स्वरुप:
पर्यावरण
संरक्षण की
खबर देते समय
केवल प्रदूषण
की समस्या न
दिखाकर,
उन
व्यक्तियों/संगठनों
को भी
प्रस्तुत
किया जाता है
जो समाधान
तलाश रहे हैं।
इसी प्रकार किसी
गाँव में जल
संकट पर
रिपोर्टिंग
के दौरान केवल
सूखे की
भयावहता नहीं, बल्कि
यह भी बताया
जाए कि
स्थानीय
समुदाय ने वर्षा
जल-संग्रहण की
व्यवस्था कर
कैसे स्थिति में
सुधार लाया।
रचनात्मक-पत्रकारिता
पाठकों को
समस्या के
समाधान की
दिशा में
सोचने और कदम
उठाने के लिए
प्रेरित करती
है।
2) समाधान-उन्मुख
पत्रकारिता (Solutions
Journalism)
·
यह
रचनात्मक-पत्रकारिता
का ही उन्नत
रूप है। समाधान-उन्मुख
पत्रकारिता
समस्याओं के
साथ-साथ उन पर
किए जा रहे
ठोस समाधानों
को प्रस्तुत
करती है।
इसमें सिर्फ
यह नहीं बताया
जाता कि
समस्या कितनी
विकराल है, बल्कि
यह भी दिखाया
जाता है कि
कौन-से प्रयास
प्रभावी
साबित हो रहे
हैं और उन्हें
किस तरह बड़े
स्तर पर
अपनाया जा
सकता है।
·
यह
पत्रकारिता
भी समाज में
सकारात्मक
परिवर्तन की
प्रेरणा देती
है। तथ्यों और
प्रमाणों के
आधार पर
रिपोर्टर
प्रश्न उठाता
है—“अब आगे क्या?” रिपोर्टिंग
का फोकस
होगीं-
समस्याऐं +
सफल समाधान
मॉडल,
इसे
आधुनिक
पत्रकारिता
का तार्किक और
वैज्ञानिक
रूप कहा जा
सकता है।
जैसे—
शिक्षा-व्यवस्था
में कमियाँ
बताने के साथ, सुधार
के लिए उन
विद्यालयों/विश्वविद्यालयों
या शिक्षकों
के उदाहरण भी
दिए जाते हैं
जिन्होंने
शिक्षण के
अभिनव तरीके
अपनाए हैं।
3) हस्तक्षेपकारी-पत्रकारिता (Interventionist Journalism)
·
इस रूप
में पत्रकार
केवल साक्षी
या दर्शक नहीं
रहता,
बल्कि
अन्याय के
विरुद्ध
आवाज़ उठाकर, सामाजिक-न्याय
के लिए
हस्तक्षेप
करता है।
·
यह
पत्रकारिता
“सिस्टम को
चुनौती देने”
का साहस रखती
है।
उदाहरणत: दलित
उत्पीड़न, महिला
शोषण,
बाल
मजदूरी या
भ्रष्टाचार
को उजागर करने
में पत्रकार
सिर्फ
रिपोर्टिंग
नहीं करता
बल्कि समाज को
जागरूक कर
समाधान की
दिशा में दबाव
बनाता है।
आलोचना यह भी
है कि कभी-कभी
हस्तक्षेप
संतुलित
पत्रकारिता
के बजाय
सक्रियतावाद (Activism)
बन जाता
है,
इस ओर
सर्तकता
जरुरी है, जैसेकि
यह अन्य
उदाहरण जिसके
तहत “India Unheard”
परियोजना
में ग्रामीण
रिपोर्टर्स
ने स्थानीय
मुद्दों पर
रिपोर्टिंग
करके सरकार की
प्रतिक्रिया
व जवाबदेही
सुनिश्चित की
थी।
4) खोजी-पत्रकारिता (Investigative Journalism)
·
यह
पत्रकारिता
का गहन,
शोध-आधारित
और अत्यंत
जिम्मेदार
स्वरूप है।
·
इसमें
पत्रकार लंबे
समय तक किसी
छिपे हुए सत्य, घोटाले, भ्रष्टाचार, कॉर्पोरेट
या राजनीतिक
षड्यंत्र की
तह तक जाने का
प्रयास करता
है। इसका मूल
लक्ष्य है जनता
को सच्चाई से
अवगत कराना और
जवाबदेही
सुनिश्चित
करना।
उदाहरण: बोफोर्स
कांड,
वाटरगेट
स्कैंडल
(अमेरिका), राफेल
डील
रिपोर्ट्स
आदि। यह
पत्रकारिता
लोकतंत्र को
पारदर्शी
रखने का
महत्वपूर्ण
साधन है।
5) शांति-पत्रकारिता
(Peace Journalism)
·
जब किसी
संघर्ष,
दंगा, युद्ध
या तनावपूर्ण
स्थिति को
रिपोर्ट करते समय
पत्रकार
हिंसा को और
भड़काने के
बजाय शांति, संवाद
और समाधान की
दिशा में
रिपोर्टिंग
करता है, तो
इसे
शांति-पत्रकारिता
कहा जाता है।
·
यह मीडिया
को ‘हिंसा के
लिए भड़काने
वाला’ नहीं
बल्कि ‘संवाद
द्वारा शांति
कायम करवाने
वाले माध्यम’
के रूप में
स्थापित करने
का प्रयास करती
है।
·
इसमें
दोनों पक्षों
की भावनाएँ, सांस्कृतिक
परिप्रेक्ष्य
और मानवीय
दृष्टिकोण को
महत्व दिया
जाता है।
उदाहरणार्थ: कश्मीरी
संघर्ष,
भारत-पाक
संबंध,
धार्मिक
तनाव की
रिपोर्टिंग
में
शांति-पत्रकारिता
का दृष्टिकोण
अत्यंत
महत्वपूर्ण
रहा है।
निश्चित
तौर पर यह सभी
रूप अलग-अलग
होते हुए भी
लोकतांत्रिक
समाज में
पत्रकारिता
की जिम्मेदारी
और
प्रासंगिकता
को और अधिक
सशक्त बनाते
हैं।
रचनात्मक
पत्रकारिता
आशा और
प्रेरणा
जगाती है।
हस्तक्षेपकारी
पत्रकारिता
अन्याय के
विरुद्ध
आवाज़ उठाना
सिखाती है।
खोजी
पत्रकारिता
सत्ता और
संस्थाओं की
जवाबदेही
सुनिश्चित
करती है।
समाधान-उन्मुख
पत्रकारिता
समाज को
व्यावहारिक
उपायों से
अवगत कराती
है।
शांति
पत्रकारिता
संघर्ष की
स्थितियों
में संवाद और
सहयोग का
मार्ग
प्रशस्त करती
है।
यह भी
उल्लेखनीय है
कि
स्वतंत्रता
के बाद जब पत्रकारिता
ने अपने
भिन्न-भिन्न
माध्यमों- रेडियो, दूरदर्शन, निजी
समाचार चैनल, और
फिर इंटरनेट
क्रांति से
विकास का नया
युग देखा—तभी
पत्रकारिता
को अपना
बहुरूपी नवीन
स्वरूप मिला, जिसे
जन-जन ने
अपनाया,
और बन गई
नागरिक-पत्रकारिता।
6) नागरिक-पत्रकारिता (Citizen Journalism)
·
जिसमें आम
नागरिक अपने
मोबाइल,
सोशल
मीडिया या
ब्लॉग के
माध्यम से
समाचार,
घटनाएँ या
सामाजिक
मुद्दों पर
अपने विचारों को
साझा करते
हैं।
·
उदाहरण:
प्राकृतिक
आपदाओं,
दुर्घटनाओं, राजनीतिक
आंदोलनों में
लोगों द्वारा
लाइव रिपोर्टिंग।
·
इसका
महत्व: मीडिया
की
एकाधिकारिता
टूटती है, आम
लोगों की
आवाज़ सामने
आती है।
·
कमज़ोरी:
तथ्यात्मक
जाँच का अभाव, अफवाह
फैलने का खतरा
रहता है।
7) साहित्यिक
और
विकासात्मक
पत्रकारिता (Literary/Narrative Journalism and Developmental
Journalism)
·
साहित्यिक
पत्रकारिता
में भाषा की
कलात्मकता, संवेदनशीलता
और मानवीय
दृष्टिकोण
होता है।
·
विकासात्मक
पत्रकारिता
ग्रामीण जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, किसान
और महिला
मुद्दों पर
केंद्रित
होती है।
इनके
अतिरिक्त आज
पत्रकारिता
के और भी कई
रुप हैं, जिनका
तुलनात्मक
अध्ययन यही
सिद्ध करता है
कि
पत्रकारिता
केवल सूचना
प्रसार का
माध्यम न होकर
सामाजिक
परिवर्तन और
जन-जागरूकता
की सशक्त
शक्ति भी है।
3. निष्कर्ष (Conclusion)
निष्कर्षतः पत्रकारिता
सूचना का
माध्यम मात्र
नहीं,
यह
लोकतंत्र की
प्रहरी,
समाज का
दर्पण और जनता
की आवाज़ है।
पत्रकारिता
के प्रत्येक
माध्यम तथा
रूप का अपना
महत्व है—
चाहे वह
प्रिंट हो, इलेक्ट्रॉनिक
याकि डिजिटल, सबसे
महत्वपूर्ण
है—
पत्रकारिता
का उद्देश्य
एंव नैतिक
मूल्य। यदि
पत्रकारिता
सत्य,
संवेदना, नैतिकता
और जनहित को
केंद्र में
रखती है, तभी
वह लोकतंत्र
के चौथे स्तंभ
के रूप में
सफल है।
अन्यथा,
वह केवल
सूचना बाजार
का हिस्सा
बनकर रह जाती
है। आधुनिक
युग में
पत्रकारिता
को सिर्फ़
“समाचार” नहीं
बल्कि “समाज
निर्माण का
माध्यम” बनना
होगा।
None.
None.
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