VALUE-BASED JOURNALISM: CONCEPT, HISTORY, STRUGGLES AND PROSPECTS

Value-based journalism: concept, history, struggles and prospects

मूल्य-आधारित पत्रकारिता: अवधारणा, ऐतिहासिकता, संघर्ष एंव संभावनाएँ

Dr. Anita Janjani 1 Icon

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1 Freelancer and Educationist and Media Professional: VoiceArtist, Media Sector, Rajasthan, Up, India

 

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ABSTRACT

English: Journalism is considered the fourth pillar of democracy, but when it is based on values ​​like truth, impartiality, transparency, and public interest, it becomes more than just a medium of information but a driving force for social change. This type of journalism is called "value-based journalism." This research article focuses on the concept, need, history, development, challenges, and possibilities of value-based journalism.

Today, when journalism often seems to stray from its original purpose in the pursuit of TRP, political pressure, and corporate profits, value-based journalism emerges as a ray of hope, in which the journalist's role is not merely that of an informant but that of a moral guardian.

The article ultimately concludes that ensuring ethical education, media literacy, self-regulation, and the independence of journalists are essential to sustain value-based journalism.

 

Hindi: पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, परंतु जब यह सत्य, निष्पक्षता, पारदर्शिता और जनहित जैसे मूल्यों पर आधारित होती है, तब वह केवल सूचना का माध्यम न रहकर सामाजिक-परिवर्तन की प्रेरक शक्ति बन जाती है। इस प्रकार की पत्रकारिता को ही "मूल्य-आधारित पत्रकारिता" कहा जाता है। यह शोध-आलेख मूल्य-आधारित पत्रकारिता (Value-Based Journalism) की अवधारणा, आवश्यकता, ऐतिहासिकता, विकास, चुनौतियों और संभावनाओं पर केंद्रित है।

आज जब पत्रकारिता अनेक बार टीआरपी, राजनीतिक दबाव, और कॉर्पोरेट लाभ की दौड़ में अपने मूल उद्देश्य से भटकती दिखती है, तब मूल्य आधारित पत्रकारिता एक आशा की किरण के रूप में सामने आती है, जिसमें पत्रकार की भूमिका केवल एक सूचनादाता की नहीं, बल्कि नैतिक प्रहरी की है।

लेख अंततः यह निष्कर्ष देता है कि मूल्य आधारित पत्रकारिता को जीवित रखने के लिए नैतिक शिक्षा, मीडिया साक्षरता, स्व-नियमन और पत्रकारों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना अनिवार्य है।

 

Received 28 August 2025

Accepted 29 September 2025

Published 23 October 2025

Corresponding Author

Dr. Anita Janjani, dranitajanjani@gmail.com

DOI 10.29121/ShodhVichar.v1.i2.2025.42  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2025 The Author(s). This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

With the license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download, reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work must be properly attributed to its author.

 

Keywords: Values-Journalism, Democracy, Ethics, Public Interest, Fake News, Digital Media, Freedom of the Press, Ethical Journalism, मूल्य-पत्रकारिता, लोकतंत्र, नैतिकता, जनहित, फ़र्ज़ी समाचार, डिजिटल मीडिया, प्रेस की स्वतंत्रता, नैतिक पत्रकारिता

 


1.  प्रस्तावना

पत्रकारिता किसी भी समाज का आइना होती है, जो न केवल घटनाओं की जानकारी देती है, बल्कि जनमत को दिशा भी दिखाती है। किंतु सूचना की इस शक्ति में जब नैतिक-मूल्य जुड़ जाते हैं, तब वह केवल पत्रकारिता ना रहकर सामाजिक-परिवर्तन का वाहक बन जाती है, और इस प्रकार की पत्रकारिता को ही "मूल्य-आधारित पत्रकारिता" कहा जाता है।

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया और टीआरपी की दौड़ ने पत्रकारिता को कई बार भटकाया है। झूठी खबरें यथा फेक न्यूज़, और पूर्वग्रह से ग्रसित रिपोर्टिंग आम हो गई है। ऐसे में मूल्य आधारित पत्रकारिता न केवल विश्वसनीयता बहाल करने में सक्षम है, बल्कि लोकतंत्र को सशक्त भी बनाती है, जिसमें पत्रकार की भूमिका केवल एक सूचनादाता की नहीं रह जाती, बल्कि नैतिक प्रहरी की होती है। प्रस्तुत आलेख में हम मूल्य आधारित पत्रकारिता की ऐतिहासिक-पृष्ठभूमि, सिद्धांत, वर्तमान चुनौतियां तथा भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।

 

2.  मूल्य-आधारित पत्रकारिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारतीय प्रेस की शुरुआत 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के प्रारंभ में सामाजिक सुधार और जागृति के माध्यम के रूप में हुई। संवाद कौमुदी (1821) के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा, बाल विवाह और जातिगत भेदभाव का विरोध करने के लिए पत्रकारिता का इस्तेमाल किया। बाल गंगाधर तिलक ने केसरी और मराठा के माध्यम से राष्ट्रवादी भावनाओं को संगठित किया और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के प्रतिरोध को प्रेरित किया, इस प्रकार अपनी शुरुआत से ही भारतीय पत्रकारिता केवल मनोरंजन के बजाय नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व पर आधारित थी।

19वीं शताब्दी में पत्रकारिता जब एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरी, तब इसका ध्येय सूचना देना, शिक्षित करना व मनोरंजन करना था। किंतु उस समय भी पत्रकारिता ने सामाजिक सुधारों, राष्ट्रीय आंदोलन और राजनीतिक जागरूकता फैलाने में महती भूमिका निभाई थी। य़ाद करें महात्मा गांधी और ‘हिंद स्वराज’ की परिकल्पना, महात्मा गांधी जो स्वयं एक पत्रकार थे, उनका प्रकाशन "यंग इंडिया" और "हरिजन" केवल समाचार पत्र नहीं, अपितु नैतिक पत्रकारिता की मिसाल थे। गांधीजी के अनुसार, पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य "सत्य की खोज और समाज को नैतिक दिशा देना" था। उन्होंने लिखा था:

"Journalism is a means to serve the people...not to earn money or fame." – M.K.Gandhi

गांधी की पत्रकारिता में तीन प्रमुख मूल्य थे:

सत्य का आग्रह (Satya)

अहिंसा और निष्पक्षता (Non-violence and impartiality) तथा,

जनसेवा की भावना (Spirit of public service) ।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मूल्य आधारित समाचार-पत्रों ने ही औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आवाज उठाकर, राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा दिया और लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था।

 

3.  स्वतंत्रता-पश्चात भारत

सन् 1947 के बाद, पत्रकारिता ने लोकतांत्रिक-ढाँचे के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया। प्रधानमंत्री नेहरू ने प्रेस को लोकतंत्र का "चौथा स्तंभ" बताया और इसे आलोचना की स्वतंत्रता (Freedom of Criticisim/Analysis) दी। यह वो दौर था जब समाचार पत्र जनहित में सरकार की भी आलोचना करने से नहीं हिचकते थे। द हिंदू और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे समाचार पत्रों ने ‘खोजी’ और ‘आलोचनात्मक पत्रकारिता’ की परंपराएँ स्थापित कीं। आपातकाल (1975-77) एक महत्वपूर्ण क्षण था जब सेंसरशिप ने प्रेस की स्वतंत्रता को खतरे में डाल दिया। द इंडियन एक्सप्रेस जैसे समाचार पत्रों ने सरकारी दबाव का विरोध किया और लोकतंत्र की रक्षा में मूल्य-आधारित पत्रकारिता की भूमिका को एक बार पुनः सिद्ध किया। 20वीं शताब्दी में, पत्रकारिता ने सामाजिक सुधारों में और भी अधिक बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया- यथा बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ नासिर्फ आवाज उठाई बल्कि लोगों को जागरूक कर सुधार की ओर अग्रसर किया।

 

4.  वैश्विक-संदर्भ

वैश्विक स्तर पर भी पत्रकारिता की नैतिक भूमिका को रेखांकित करते अनेक उदाहरण मिलते हैं:

 पेंटागन पेपर्स (1971, अमेरिका): डैनियल एल्सबर्ग के लीक ने वियतनाम युद्ध के दौरान सरकार के झूठ का पर्दाफाश किया।

वाटरगेट कांड (1972): वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन ने राजनीतिक भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया, जिसके कारण राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा।

पनामा पेपर्स (2016): वित्तीय-भ्रष्टाचार और कर-मुक्त देशों को उजागर करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय सहयोगात्मक जाँच, इत्यादि मामले दर्शाते हैं कि मूल्यों पर आधारित होने पर, पत्रकारिता लोकतंत्र और जवाबदेही के संरक्षक के रूप में कार्य करती है।

 

5.  मूल्य आधारित पत्रकारिता के मानक स्तंभ

मूल्य आधारित पत्रकारिता केवल विचारधारा नहीं, बल्कि व्यावहारिक-पत्रकारिता का नैतिक ढांचा है। इसके पाँच प्रमुख स्तंभ हैं:-

1)    सत्यता (Truthfulness)

पत्रकारिता का सबसे बुनियादी मूल्य है- सत्य। किसी भी खबर की विश्वसनीयता तभी मानी जाती है जब वह तथ्यों पर आधारित हो। आज "फेक न्यूज़" और "सेंसेशनलिज़्म" के युग में सत्यता बनाए रखना एक चुनौती है। मसलन COVID-19 के दौरान BBC और The Hindu जैसी संस्थाओं ने जाँच पर आधारित रिपोर्टिंग करके अफवाहों का खंडन किया था, ऐसे और भी उदाहरण मिलते हैं।

2)    निष्पक्षता (Impartiality):

एक पत्रकार का दायित्व है कि वह किसी विचारधारा, दल या समूह के प्रति पक्षपाती न हो। निष्पक्षता का अर्थ है—विरोधी मतों को भी समान अवसर देना और खबरों में संतुलन बनाए रखना। पत्रकारों को किसी भी पक्षपात या पूर्वाग्रह से मुक्त होकर घटनाओं को प्रस्तुत कर सभी दृष्टिकोणों को समान रूप से महत्व देना चाहिए।

3)    उत्तरदायित्व (Accountability)

मूल्य आधारित पत्रकारिता में सामाजिक जिम्मेदारी लेना आवश्यक है कि यदि कोई त्रुटि हो, तो उसे स्वीकार कर सार्वजनिक माफी दी जाए। यह पत्रकारिता की नैतिकता को मजबूत करता है। उदाहरणत: The Indian Express ने 2018 में अपने एक गलत संपादकीय के लिए सार्वजनिक खंडन प्रकाशित किया, जो उदाहरण बना।

4)    पारदर्शिता (Transparency)

पत्रकार को यह बताना चाहिए कि वह किस स्रोत से जानकारी ले रहा है, या खबर से उसका कोई हित जुड़ा है या नहीं। पारदर्शिता विश्वास की कुंजी है। पत्रकारों को पेशेवर रहकर अपने काम के प्रति समर्पित और उच्च मानकों का पालन करना चाहिए।

5)    जनहित (Public Interest)

मूल्य आधारित पत्रकारिता का अंतिम और सर्वोच्च मूल्य है—जनता के व्यापक हित में सूचना देना। यह पत्रकार को केवल खबर देने वाला नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी बनाता है।

मूल्य आधारित पत्रकारिता का सबसे बड़ा लाभ ही यही है कि यह न केवल समाज को सही जानकारी प्रदान करती है, बल्कि लोकतंत्र को भी सशक्त बनाती है, फिर भी इस नैतिक पत्रकारिता के सामने आज अनेक चुनौतियाँ हैं, जो केवल वैचारिक नहीं, बल्कि संरचनात्मक और राजनीतिक भी हैं।

 

6.  मूल्य-आधारित पत्रकारिता का संघर्ष

·        विश्वसनीयता और "फर्जी खबरें": आज के समय में, "फर्जी खबरें" (fake-news) और गलत सूचना का प्रसार एक बड़ी चुनौती है। पाठकों का भरोसा जीतना और विश्वसनीय स्रोत के रूप में अपनी पहचान बनाए रखना पत्रकारिता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।

·        आर्थिक दबाव: मीडिया संस्थानों पर आर्थिक दबाव बढ़ रहा है, जिससे गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता करना मुश्किल हो गया है। विज्ञापन और राजस्व जुटाने की होड़ में, कई बार पत्रकारिता के मूल्यों से समझौता करना पड़ता है।

·        दर्शकों की बदलती अपेक्षाएँ: दर्शकों की अपेक्षाएँ तेजी से बदल रही हैं। वे अब त्वरित और मनोरंजक सामग्री की तलाश में हैं, जिससे पत्रकारिता को सूचनात्मक और विश्लेषणात्मक होने के साथ-साथ मनोरंजक भी बनना पड़ रहा है।

·        तकनीकी परिवर्तन: कृत्रिम-बुद्धिमत्ता (ArtificialIntelligence) और अन्य तकनीकी विकास पत्रकारिता के क्षेत्र में नए अवसर और चुनौतियाँ ला रहे हैं। AI पत्रकारिता को कुछ हद तक स्वचालित कर सकता है, लेकिन इससे नौकरी छूटना और डेटा गोपनीयता जैसे नैतिक मुद्दों रुपी प्रश्न भी उठते हैं।

·        पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता का संकट: दुनिया भर में पत्रकार अपने काम के दौरान शारीरिक, कानूनी और डिजिटल हमलों का शिकार हो रहे हैं, खासकर महिला-पत्रकारों को (molestation) उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। भारत में पत्रकारों पर हमले और मुकदमे तेजी से बढ़े हैं।

·        निष्पक्षता की चुनौती: पत्रकारिता में निष्पक्षता बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। सामाजिक और राजनीतिक दबावों के बीच, पत्रकारों को निष्पक्ष और तटस्थ रहने की कोशिश करनी होती है।

·        सूचना की पुष्टि: पत्रकारों के लिए सूचना की पुष्टि करना और विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करना एक बड़ी चुनौती है। गलत सूचना और "फर्जी खबरों" के प्रसार को रोकने के लिए, पत्रकारों को सूचना की सत्यता की जांच करनी होती है।

·        राजनीतिक दबाव और मीडिया का ध्रुवीकरण: राजनीतिक दल कई बार मीडिया संस्थानों पर विज्ञापन, लाइसेंस या कॉर्पोरेट हितों के माध्यम से दबाव बनाते हैं। इसके चलते पत्रकारों की निष्पक्षता प्रभावित होती है।

·        कॉरपोरेट स्वामित्व और लाभ केंद्रित मॉडल: मीडिया संस्थान बड़े कॉरपोरेट समूहों के अधीन हो गए हैं, जिनकी प्राथमिकता लाभ है, न कि  जनहित। इससे कई बार पत्रकार स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट नहीं कर पाते।

·        प्रशिक्षण और नैतिक शिक्षा की कमी:  बहुत से पत्रकारों को पेशे में नैतिकता, जाँच तकनीक, या जनहित रिपोर्टिंग की विधियों का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। इससे गुणवत्तापूर्ण और मूल्य-सम्मत रिपोर्टिंग का अभाव हो जाता है।

 

7.  सुधार के उपाय एंव भविष्य की संभावनाएं:

·        पेशेवर प्रशिक्षण और विकास: पत्रकारिता संस्थानों में नैतिकता, तथ्य जांच, और जनहित रिपोर्टिंग को पाठ्यक्रम में अनिवार्य किया जाना चाहिए। पत्रकारों को नियमित रूप से पेशेवर प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए ताकि वे नवीनतम तकनीकों और नैतिक मानकों से अवगत रहें।

·        फैक्ट-चेकिंग और स्रोत सत्यापन: पत्रकारों को अपनी कहानियों व सूचनाओं को प्रकाशित करने से पहले तथ्यों की जांच कर, स्रोतों को सत्यापित करना चाहिए।

·        पारदर्शिता और जवाबदेही: मीडिया संगठनों को अपनी संपादकीय नीतियों और प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बरतनी चाहिए, और अपने कार्यों के लिए जवाबदेह होना चाहिए।

·        जनता के साथ जुड़ाव: मीडिया संगठनों को जनता के साथ जुड़ना चाहिए, उनकी चिंताओं को सुनना चाहिए, और उनके साथ संवाद स्थापित करना चाहिए।

·        नैतिक पत्रकारिता का अभ्यास: पत्रकारों को नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, जिसमें सत्यता, निष्पक्षता, निष्ठा और सार्वजनिक हित शामिल हैं।

·        AI का जिम्मेदारी से उपयोग: AI का उपयोग करते समय, पत्रकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मानवीय स्पर्श और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता को कम न करें।

·        कानूनी सुरक्षा: पत्रकारों को कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे बिना किसी डर के अपने काम को कर सकें।

·        मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना: जनता को मीडिया साक्षरता के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है ताकि वे जानकारी का विश्लेषण कर सकें और "फर्जी खबरों" से खुद को बचा सकें।

·        संवैधानिक संरक्षण: प्रेस की स्वतंत्रता को संवैधानिक रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि पत्रकार बिना किसी संकोच निडरता से अपना काम कर सकें।

इन उपायों को लागू कर, हम बहुत हद तक मूल्य आधारित पत्रकारिता की चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं और एक अधिक विश्वसनीय, निष्पक्ष और प्रभावी मीडिया परिदृश्य बना सकते हैं।

सारतः मूल्य आधारित पत्रकारिता न केवल एक आदर्श है, बल्कि आज लोकतंत्र की रक्षा की आवश्यकता भी है। जब पत्रकारिता सत्य, निष्पक्षता, जवाबदेही और जनहित जैसे मूल्यों पर आधारित होती है, तब वह केवल सूचना का माध्यम नहीं रहती, अपितु सामाजिक परिवर्तन की शक्ति बन जाती है। वर्तमान चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में ऐसी पत्रकारिता को जीवित रखना आसान नहीं, लेकिन, पत्रकार, पाठक और समाज यदि मिलकर इसका समर्थन करें, तो यह असंभव भी नहीं है। समाधान-उन्मुख, शोध-आधारित और जन-संवेदनशील रिपोर्टिंग ही भविष्य का मार्ग है। यही सही समय है जबकि हम न केवल अच्छी पत्रकारिता की मांग करें, बल्कि उसे सक्रिय रूप से समर्थन भी दें।

 

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